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यह दरकती ज़मीन : भारत का पारिस्थितिक इतिहास / माधव गाडगिल, रामचंद्र गुहा ; अनुवादक कमल नयन चौबे।

By: Contributor(s): Material type: TextTextLanguage: Hindi Original language: English Publication details: नई दिल्ली : ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 2018ISBN:
  • 9780199485208
Other title:
  • This fissured land : an ecological history of India
  • Yeh darakti zameen : bharat ka parishitik itihas
Subject(s): Summary: "यह पुस्तक सबसे पहले 1992 में प्रकाशित हुई थी। यह भारतीय उपमहाद्वीप का व्याख्यात्मक पारिस्थितिक इतिहास प्रस्तुत करती है। यह पारिस्थितिक विवेक और अपव्यय का एक सिद्धांत प्रस्तुत करती है और दक्षिण एशिया के व्यापक इतिहास पर इस सिद्धांत को लागू करती है। यह पुस्तक विशेष रूप से वन संसाधनों के उपयोग और दुरुपयोग पर ध्यान केंद्रित करती है। भाग-1 में लेखकों ने पारिस्थितिक इतिहास का भारत का सामान्य सिद्धांत प्रस्तुत किया है। भाग-2 में पूर्व-आधुनिक भारत का एक नवीन व्याख्यात्मक इतिहास और जाति व्यवस्था की एक पारिस्थितिक व्याख्या पेश की गई है। पुस्तक के तीसरे भाग-3 में लेखकों ने भारत में अंग्रेजों द्वारा आरंभ किये गये संसाधन-उपयोग की प्रणाली का सामाजिक-पारिस्थितिक विश्लेषण किया है। इस संदर्भ में उन्होंने व्यापक अनुसंधान-सामग्री को अपने स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया है। यह पुस्तक भारत के पारिस्थितिक इतिहास से जुड़े विविध पहलुओं को समझने के लिए अनिवार्य है। यह वर्तमान पर्यावरणीय द्वंद्वों के विश्वलेषण के लिए आवश्यक ऐतिहासिक अंतर्दृष्टि भी प्रदान करती है।English TranslationThis Fissured Land, first published in 1992, presents an interpretative history ecological history of the Indian subcontinent. It offers a theory of ecological prudence and profligacy, testing this theory across the wide sweep of South Asian history. The book especially focuses on the use and abuse of forest resources. In Part One, the authors present a general theory of ecological history. Part Two provides a fresh interpretative history of pre-modern India along with an ecological interpretation of the caste system. In Part Three, the authors draw upon a huge wealth of source material in their socio-ecological analysis of the modes of resource use introduced in India by the British. This is the Hindi translation of the English edition."--
Item type:
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Item type Home library Collection Call number Status Date due Barcode
Print Print OPJGU Sonepat- Campus Main Library General Books 304.20954 GA-Y (Browse shelf(Opens below)) Available 147721

"यह पुस्तक सबसे पहले 1992 में प्रकाशित हुई थी। यह भारतीय उपमहाद्वीप का व्याख्यात्मक पारिस्थितिक इतिहास प्रस्तुत करती है। यह पारिस्थितिक विवेक और अपव्यय का एक सिद्धांत प्रस्तुत करती है और दक्षिण एशिया के व्यापक इतिहास पर इस सिद्धांत को लागू करती है। यह पुस्तक विशेष रूप से वन संसाधनों के उपयोग और दुरुपयोग पर ध्यान केंद्रित करती है। भाग-1 में लेखकों ने पारिस्थितिक इतिहास का भारत का सामान्य सिद्धांत प्रस्तुत किया है। भाग-2 में पूर्व-आधुनिक भारत का एक नवीन व्याख्यात्मक इतिहास और जाति व्यवस्था की एक पारिस्थितिक व्याख्या पेश की गई है। पुस्तक के तीसरे भाग-3 में लेखकों ने भारत में अंग्रेजों द्वारा आरंभ किये गये संसाधन-उपयोग की प्रणाली का सामाजिक-पारिस्थितिक विश्लेषण किया है। इस संदर्भ में उन्होंने व्यापक अनुसंधान-सामग्री को अपने स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया है। यह पुस्तक भारत के पारिस्थितिक इतिहास से जुड़े विविध पहलुओं को समझने के लिए अनिवार्य है। यह वर्तमान पर्यावरणीय द्वंद्वों के विश्वलेषण के लिए आवश्यक ऐतिहासिक अंतर्दृष्टि भी प्रदान करती है।English TranslationThis Fissured Land, first published in 1992, presents an interpretative history ecological history of the Indian subcontinent. It offers a theory of ecological prudence and profligacy, testing this theory across the wide sweep of South Asian history. The book especially focuses on the use and abuse of forest resources. In Part One, the authors present a general theory of ecological history. Part Two provides a fresh interpretative history of pre-modern India along with an ecological interpretation of the caste system. In Part Three, the authors draw upon a huge wealth of source material in their socio-ecological analysis of the modes of resource use introduced in India by the British. This is the Hindi translation of the English edition."--

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